Yoga practice is considered as the best among all the sadhana. It is pure, sattvik
and experimental. Its results are of immediate and lasting importance too. Yoga
says that only after attaining the obstruction of the mind, Siddhi or Samadhi can
be attained - 'Yoga Natyapatnaya Pratikraman'.
By keeping awake towards mind, mind and mind, yoga practice is encroached on emotion,
desire, action and thought. For this Yama, Rule, Asana, Pranayama and withdrawal
of these five yoga is done primarily. After attaining the above 5, the impression
and meditation start happening automatically.
Ashta Siddhi is attained by Yoga meditation. After achieving the achievements, one
can fulfill all his desires.
Nirvikalpa Samadhi means that the situation of the neutrality, even after the idea
of thought, speech and behavior (outward grief). Only the knowledgeable ones live
in such a Tumtal state where no mental or physical conditions affect them and no
vibrations arise. Apart from this, only theologians can get you the true meditation
(Shukla) of the soul.
यह सर्वविदित है कि प्राकृतिक विधि से रोगों को ठीक करने में योग एवं प्राणायाम बहुत अच्छा सहयोग करते हैं। डॉ योगेश कायाकल्प हॉस्पिटल, सीकर में प्रत्येक रोगी को उसके रोग के अनुसार योगासन सिखाया जाता है, जिससे न्यूरो पंचकर्म विधि से ठीक होने के पश्चात वे योग साधना करते हुए अपने जीवन में हमेशा ठीक रह सकते है।
योग साधना सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है।
इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों
का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।
मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार
का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग
को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत:
ही घटित होने लगते हैं। योग साधना द्वारा अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों
के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है
निर्विकल्प समाधि यानी विचार, वाणी और वर्तन कीउपाधि(बाहर से आनेवाला दुःख) रहने के
पश्चात भी सपूंर्ण निराकुलता की स्थिति। सिर्फ ज्ञानी ही ऐसी समाधि दशा में रहते हैं,
जहाँ मानसिक या शारीरिक कोई भी स्थिति उन्हें असर नहीं करती और न ही कोई स्पंदन उत्पन्न
होते हैं। इसके अलावा, सिर्फ केवलज्ञानी ही आपको आत्मा का वास्तविक ध्यान (शुक्लधान)
प्राप्त करवा सकते हैं।